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धवला पुस्तक 15
251 से किसी भी तत्त्व का निर्देश नहीं किया जा सकेगा।13।।
अभावकान्तपक्षेऽपि भावापह्नववादिनाम्। बोध-वाक्यं प्रमाणं न केन साधन-दूषणम्।14।।
'कोई भी पदार्थ सत्स्वरूप नहीं है' इस प्रकार से सर्वथा अभाव पक्ष को स्वीकार करने पर भी सत्स्वरूपता का अपलाप करने वाला शून्यैकान्तवादियों (माध्यमिक) के यहाँ बोधरूप स्वार्थानुमान और वाक्यरूप पदार्थानुमान प्रमाण का भी सद्भाव नहीं रह सकेगा। ऐसी अवस्था में शून्यता रूप स्वपक्ष की सिद्धि किस प्रमाण से की जावेगी तथा सत्स्वरूप पदार्थ को स्वीकार करने वाले अन्य वादियों के पक्ष को दूषित भी किस प्रमाण के द्वारा किया जावेगा।।14।। विरोधान्नोभयेकात्म्यं स्याद्वादन्यायविद्विषाम्। अवाच्यतैकान्तेऽयुक्ति वाच्यमिति युज्यते।।15।।
‘पदार्थ सत् व असत् स्वरूप है' इस प्रकार अनेकान्त विरोधियों के यहाँ उभयस्वरूपता का भी एकान्त पक्ष नहीं बनता, क्योंकि उसमें विरोध है। ‘पदार्थ सर्वथा वचन के अगोचर है इस प्रकार का भी एकान्तपक्ष सम्भव नहीं है, क्योंकि वैसा होने पर अवाच्य है' इस वाक्य का प्रयोग भी अयुक्त होगा।।15।। कथंचित्ते सदेवेष्टं कथंचिदसदेव तत्। तथोभयमवाच्यं च नययोगान्न सर्वथा।।16।।
हे भगवन्! आपका अभीष्ट तत्त्व कथंचित् सत् स्वरूप ही है, वह कचित् असत् स्वरूप ही है, कचित् उभय (सत्-असत्) स्वरूप भी है और कथंचित् अवाच्य भी है। वह अभीष्ट तत्त्व नय के सम्बन्ध से ऐसा है, सर्वथा वैसा नहीं है।।16।।