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धवला उद्धरण
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गुणकार आगे कहते हैं।।।12।।
सेडिअसंखेज्जदिमो भागो सुण्णस्स अंगुलस्सेव। पलिदोवमस्स सुहुमे पदरस्स गुणो दु सुण्णस्स।।13।।
इसका गणकार जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग है। तीसरी शन्यवर्गणा का गुणकार अंगुल का असंख्यातवां भाग है। सूक्ष्मनिगोदवर्गणा में गुणकार पल्य का असंख्यातवां भाग है। चौथी शून्यवर्गणा का गुणकार जगप्रतर का असंख्यातवां भाग है।।13।। एदेसिं गुणगारो जहणियादो दु जाण उक्कस्से। साहिअमिह महखंधेऽसंखेज्जदिमो दु पल्लस्स।।14।।
इन सब वर्गणाओं के ये गुणकार अपने जघन्य से उत्कृष्ट भेद लाने के लिए जानने चाहिए तथा महास्कन्ध में अपने जघन्य से अपना उत्कृष्ट पल्य का असंख्यातवां भाग अधिक है।।।14।।।
इच्छं विरलिय गुणियं अण्णोण्णगुणं पुणो दुपडिरासिं। काऊण एक्करासिं उत्तरजुदआदिणा गुणिय।।15।। उत्तरगुणिदं इच्छं उत्तरआदीए संजुदं अवणे। सेस हरेज्ज पडिणा आदिमछेदद्धगुणिदेण ।।16।।
इच्छित गच्छ का विरलन कर और उस विरलन राशि के प्रत्येक एक को दूना कर परस्पर गुणा करने से जो उत्पन्न हो उसकी दो प्रतिराशियाँ स्थापित कर उनमें से एक राशि को उत्तर सहित आदि राशि से गुणित कर इसमें से उत्तर गुणित और उत्तर आदि संयुक्त इच्छाराशि को घटा देने पर शेष रहे उसमें आदिम छेद के अर्धभाग से गुणित प्रतिराशि का भाग देने पर इच्छित संकलन का प्रमाण आता है।।5-16।।
बीजे जोणीभूदे जीवो वक्कमइ सो व अण्णो वा। जं वि य मूलादीया ते पत्ते या पढमदाए।।7।।