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धवला उद्धरण
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(सत्ता) सत् का स्वरूप सत्ता सव्वपयत्था सविस्सरूवा अणंतपज्जाया। भगुप्पायधुवत्ता सप्पडिवक्खा हवइ एक्का।।4।।
सत्ता सब पदार्थों में स्थित है, सविश्वरूप है, अनन्त पर्यायवाली है, नाश, उत्पाद और ध्रौव्यस्वरूप है तथा सप्रतिपक्ष होकर भी एक है।।4।।
नय का स्वरूप उच्चारदम्मि दु पदे णिक्खेवं वा कयं दु दठूण। अत्थं णयति ते तच्चदो त्ति तम्हा णया भणिदा।।1।।
उच्चारण किये गये पद में जो निक्षेप होता है उसे देखकर वे अर्थ का तत्त्वतः निर्णय करा देते हैं, इसलिये उन्हें नय कहा है।।1।।
ईर्यापथ कर्म का लक्षण अप्पं बादर मवुअं बहुअं लहुक्खं च सुक्किलं चेव। मंदं महव्वयं पि य सादब्भहियं च तं कम्म।।2।।
वह ईर्यापथ कर्म अल्प है, बादर है, मृदु है, बहुत है, रुक्ष है, शुक्ल है, मन्द अर्थात् मधुर है, महान् व्यय वाला है और अत्यधिक सात रूप है।2।।
गहिदमगहिदं च तहा बद्धमबद्धं च पुट्ठपुढें च। उदिदाणुदिदं वेदिदमवेदिदं चेव तं जाणे।।3।।
उसे गृहीत होकर भी अगृहीत, बद्ध होकर भी अबद्ध, स्पृष्ट होकर भी अस्पृष्ट, उदित होकर भी अनुदित और वेदित होकर भी अवेदित जानना चाहिये।।3।। णिज्जरिदाणिज्जरिदं उदीरिदं चेव होदि णायव्व। अणुदीरिदं ति य पुणो इरियावहलक्खणं एदं।।4।।