________________
धवला पुस्तक 13
211
प्रमाणनयनिक्षेपैर्यो ऽर्थो
नाभिसमीक्ष्यते ।
युक्तं चायुक्तवद्भाति तस्यायुक्तं च युक्तवत् ।।1।। जिस पदार्थ का प्रत्यक्षादि प्रमाणों के द्वारा, नैगमादि नयों के द्वारा और नामादि निक्षेपों के द्वारा सूक्ष्म दृष्टि से विचार नहीं किया जाता है, वह पदार्थ युक्त (संगत) होते हुए भी अयुक्तसा (असंगतसा) प्रतीत होता है और अयुक्त होते हुए भी युक्तसा प्रतीत होता है।।1।।
कालाणु का स्वरूप / विशेषता
लोगागासपदे से एक्केक्के जे ट्ठिया हु एक्के क्का । रयणाणं रासी इव ते कालाणू मुणेयव्वा ।।2।। लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर रत्नों की राशि के समान जो एक-एक स्थित हैं वे कालाणु हैं, ऐसा जानना चाहिये ।।।2।।
स्कन्ध और परमाणु का लक्षण
खंधं सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणति देसो त्ति । अद्धद्धं च पदेसो अविभागी जो स परमाणू ।।3।।
जो सर्वांश में समर्थ है उसे स्कन्ध कहते हैं। उसके आधे को देश और आधे के आधे को प्रदेश कहते हैं तथा जो अविभागी है उसे परमाणु कहते हैं।।3।।