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धवला उद्धरण
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समाप्ति में एक पाद अर्थात् एक वितस्ति प्रमाण (जांघों की) वह छाया कही गई है। अर्थात् इस समय पूर्वाह्न काल में बारह अंगुल प्रमाण छाया के रह जाने पर अध्ययन समाप्त कर देना चाहिये ।।111।।
सैवापराह्नकाले बेला स्याद्वाचनाविधौ विहिता । सप्तपदी पूर्वाह्णापराह्णयोर्ग्रहण- मोक्षेषु ।।112 ।।
वही समय (एक पद) अपराह्नकाल में वाचना की विधि में अर्थात् प्रारम्भ करने में कहा गया है। पूर्वाह्नकाल में वाचन का प्रारम्भ करने और अपराह्नकाल में उसके छोड़ने में सात पद (वितस्ति) प्रमाण छाया कही गई है (प्रात:काल जब सात पद छाया हो जावे तब अध्ययन प्रारम्भ करे और अपराह्न में सात पद छाया रह जाने पर समाप्त करे ) ।।112 ।।
ज्येष्ठामूलात्परतोऽप्यापीषाद्द्द्वयंगुला हि वृद्धिः स्यात् । मासे मासे विहिता क्रमेण सा वाचनाछाया।।113।। ज्येष्ठ मास के आगे पौष मास तक प्रत्येक मास में दो अंगुल प्रमाण वृद्धि होती है। यह क्रम से वाचना समाप्त करने की छाया का प्रमाण कहा गया है।।113।।
एवं क्रमप्रवृद्धया पादद्वयमत्र हीयते पश्चात् । पौषादाज्ये ष्टान्ताद द्वयंगुलमेवेति विज्ञेयम् ।।114।।
इस प्रकार क्रम से वृद्धि होने पर पौष मास तक दो पाद हो जाते हैं। पश्चात् पौष मास से ज्येष्ठ मास तक दो अंगुल ही क्रमशः कम हो जाते हैं, ऐसा जानना चाहिये ।।114॥
दव्वादिवदिक्कमणं करेदि सुत्तत्थसिक्खलोहेण । असमाहिसमज्झायं कलहं बाहि वियोगं च ||115||
सूत्र और अर्थ की शिक्षा के लोभ से किया गया द्रव्यादिक का अतिक्रमण असमाधि अर्थात् सम्यक्त्वादि की विराधना, अस्वाध्याय