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धवला पुस्तक 9
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अष्टमी में अध्ययन गुरु और शिष्य दोनों के वियोग को करता है। पूर्णमासी के दिन किया गया अध्ययन कलह और चतुर्दशी के दिन किया गया अध्ययन विघ्न को करता है ||107 ||
कृष्णचतुर्दश्यां यद्यधीयते साधवो ह्यामावस्याम् । विद्योपवासविधयो विनाशवृत्ति प्रयान्त्यशेषं सर्वे ।।108 ।।
यदि साधुजन कृष्ण चतुर्दशी और अमावस्या के दिन अध्ययन करते हैं तो विद्या और उपवास विधि सब विनाशवृत्ति को प्राप्त होते हैं।।108।।
मध्यान्हे जिनरूपं नाशयति करोति संध्ययोर्व्याधिम् । तुष्यन्तोऽप्यप्रियतां मध्यमरात्री समुपयान्ति ।।109 ।।
मध्याह्न काल में किया गया अध्ययन जिनरूप को नष्ट करता है, दोनों संध्याकालों में किया गया अध्ययन व्याधि को करता है तथा मध्यम रात्रि में किये गये अध्ययन से अनुरक्तजन भी द्वेष को प्राप्त होते हैं।।109।।
अतितीव्रदुःखितानां रुदतां संदर्शने समीपे च । स्तनयित्नुविद्युदभ्रे ष्वतिवृष्टया उल्कनिर्घाते ।।110।।
अतिशय तीव्र दुख से युक्त और रोते हुए प्राणियों को देखने या समीप में होने पर मेघों की गर्जना व बिजली के चमकने पर और अतिवृष्टि के साथ उल्कापात होने पर (अध्ययन नहीं करना चाहिये)।।110।।
अध्ययन समाप्ति काल
प्रतिपद्येकः पादो ज्येष्ठामूलस्य पौर्णमास्यां तु । सा वाचनाविमोक्षे छाया पूर्वाह्णवेलायाम् ॥111।। जेठ मास की प्रतिपदा एवं पूर्णमासी को पूर्वाह्न काल में वाचना की