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धवला पुस्तक 9
167 ऋद्धियों के भेद बुद्धि तवो वि य लद्धी विउव्वणलद्धी तहेव ओसहिया।
रस-बल-क्षक्खीणा वि य लद्धीओ सत्त पण्णत्ता।।18।। __बुद्धि, तप, विक्रिया, औषधि, रस, बल और अक्षीण, इस प्रकार ऋद्धियाँ सात कही गई हैं।।18।।
एक अक्षौहिणी सेना का प्रमाण नवनागसहसाणि नागे नागे शतं रथाः। रथे रथे शतं दुर्गाः तुर्गे तुर्गे शतं नराः।।19।।
एक अक्षौहिणी सेना में नौ हजार हाथी, एक हाथी के आश्रित सौ रथ, एक रथ के आश्रित सौ घोड़े और एक-एक घोड़े के आश्रित सौ मनुष्य होते हैं।।19।।
निमित्त के भेद अंगे सरो वंजण-लक्खणाणि छिण्णं च भौम्मं सुमिणंतरिक्खं। एदे णिमित्तेहि य राहणिज्जा जाणति लोयस्स सुहासुहाई।।19।।
अंग, स्वर, व्यञ्जन, लक्षण, छिन्न, भौम, स्वप्न और अन्तरिक्ष, इन निमित्तों से आराधनीय साधु जनसमुदाय के शुभाशुभ को जानते हैं।।19।।
विद्या के भेद जादीसु होइ विज्जा कुलविज्जा तह य होइ तवविज्जा। विज्जाहरेसु एदा तवविज्जा होइ साहूण।।20।।
जातियों में विद्या अर्थात् जातिविद्या है, कुलविद्या तथा तपविद्या भी विद्या हैं। ये विद्यायें विद्याधरों में होती हैं, किन्तु तपविद्या साधुओं के होती है।20।