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धवला पुस्तक 7
145 दिया जाय तभी वह आघात करने वाले हिंसा कर्म से संयुक्त मनुष्य नारकी कहा जाय।।4।।
समभिरूढ़ नय वयणं दु समभिरूढं णारयकम्मस्स बंधगो जइया। तइया सो रइओ णरयकम्मेण संजुत्तो।।5।।
समभिरूढ़ नय का वचन इस प्रकार है- जब मनुष्य नारक कर्म का बन्धक होकर नारक कर्म से संयुक्त हो जाय तभी वह नारकी कहा जाय।।5।।
एवंभूत नय णिरयगई संपत्तो जइया अणुहवइ णारयं दुक्खं। तइया सो रइओ एवंभूदो णओ भणदि।।6।।
जब वही मनुष्य नरक गति को प्राप्त होकर नरक के दुःख अनुभव करने लगता है तभी वह नारकी है, ऐसा एवंभूत नय कहता है।।।6।।
समुत्कीर्तन का लक्षण संखा तह पत्थारो परियट्टण णट्ठ तह समुद्दिठें। एदे पंच वियप्पा ट्ठाणसमुक्कित्तणे णेया।।7।।
संख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, नष्ट और समुद्दिष्ट, इन पाँच विकल्पों का स्थान समुत्कीर्तन जानना चाहिये।।7।।
संख्या का स्वरूप सव्वे वि पुव्वभंगा उवरिभंगेसु एक्कमेक्के सु। मेलति त्ति य कमसो गुणिदे उप्पज्जदे संखा।।8।। सभी पूर्ववर्ती भंग उत्तरवर्ती प्रत्येक भंग में मिलाये जाते हैं, अतएव