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धवला पुस्तक 7
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जे बंधयरा भावा मोक्खयरा भावि जे दु अज्झप्पे। जे चावि बंधमोक्खे अकराया ते वि विण्णेया।।1।।
अध्यात्म में जो बन्ध के उत्पन्न करने वाले भाव हैं और जो मोक्ष को उत्पन्न करने वाले भाव हैं तथा जो बन्ध और मोक्ष दोनों को नहीं उत्पन्न करने वाले भाव हैं, वे सब भाव जानने योग्य हैं।।1।।
आस्रव भाव और संवर भाव मिच्छत्ताविरदी वि य कसायजोगा य आसवा होति। दंसण-विरमण-णिग्गह-णिरोहया संवरो होंति।।2।।
मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग ये कर्मों के आस्रव भाव हैं अर्थात् कर्मों के आगमनद्वार हैं तथा सम्यग्दर्शन, संयम अर्थात् विषयविरक्ति, कषायनिग्रह और मन-वचन-काय का निरोध ये संवर अर्थात् कर्मों के निरोधक भाव हैं।।।2।।
भावों की विशेषता ओदइया बंधयरा उवसम-खय-मिस्सया य मोक्खयरा। भावो दु पारिणामिओ करणोभयवज्जियो होति।।3।। __ औदायिक भाव बन्ध करने वाले हैं, औपशामिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव मोक्ष के कारण है तथा पारिणामिक भाव बन्ध और मोक्ष दोनों के कारण से रहित हैं।।3।।