________________
धवला उद्धरण
138
अनुभाग उदय उत्तरोत्तर अनन्तरकाल में अनन्तगुणे हीन हैं, परन्तु अनुभागसंक्रम भाज्य है अर्थात् उक्त हीनता के नियम से रहित है।।30।।
जीव की संग्रह कृष्टियाँ बारस णव छ त्तिण्णि य किट्टीओ होति अहव णंताओ। एक्केक्कम्हि कसाए तिग तिग अहवा अणंताओ।।31।
क्रोध के उदय से श्रेणी पर चढ़े हुए जीव के बारह, मान के उदय से चढ़े हुए जीव के नौ, माया के उदय से चढ़े हुए जीव के छह और लोभ के उदय से चढ़े हुए जीव के तीन संग्रहकृष्टियाँ अथवा अनन्त अन्तरकृष्टियां होती हैं।।31।।
कृष्टि का कारक और अकारक किट्टी करेदि णियमा ओवटेंतो ठिदी य अणुभागे। वड्ढें तो किट्टीए अकारगो होदि बोद्धव्वो।।32।।
स्थिति व अनुभाग का अपकर्षण करने वाला नियम से कृष्टियों को करता है, किन्तु स्थिति व अनुभाग का उत्कर्षण करने वाला कृष्टि का अकारक होता है। ऐसा समझना चाहिए।।32।।
कृष्टि का लक्षण गुणसेडि अणंतगुणा लोभादीकोधपच्छिमपदादो। कम्मस्स य अणुभागे किट्टीए लक्खणं एदं।।33।।
चार संज्वलन कर्मों के अनुभाग के विषय में संज्वलन लोभ की जघन्य कृष्टि से लेकर संज्वलन-क्रोध की अन्तिम उत्कृष्टि यथाक्रम से अनन्तगुणित गुणश्रेणी है। कृष्टि का लक्षण है।।33।। किट्टी च ठिदिविसेसेसु असंखेज्जेसु णियमसा होदि। णियमा अणुभागेसु च होदि हु किट्टी अणतेसु।।34।।