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धवला उद्धरण
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प्रक्षेपों के प्रमाण प्रक्षेपकसंक्षेपेण विभक्ते यद्धनं समुपलब्धम्। प्रक्षेपास्तेन गुणाः प्रक्षेपसमानि खंडानि।।1।।
यदि किसी राशि के विवक्षित राशिप्रमाण खण्ड करना हो, तो उन खण्डप्रमाणों (प्रक्षेपकों) को जोड़ लो और उससे राशि में भाग दे दो। इस भाग से जो धन लब्ध आवे, उससे उन प्रक्षेपकों का गुणा करने से क्रमशः प्रक्षेपों के प्रमाण खण्ड प्राप्त हो जावेंगे।।1।।
निषकों का भागहार इच्छिदणिसेयभत्तो पढमणिसे यस्स भागहारो जो। पढमणिसेयेण गुणो तहिं तहिं होइ अवहारो।2।।
प्रथम निषेक का जो भागहार हो उसमें इच्छित निषेक का भाग देने तथा प्रथम निषेक से गुणा करने पर भिन्न-भिन्न निकों का भागहार उत्पन्न होता है।।2।।
पंच लब्धि खय उवसमिय-विसोही देसण-पाओग्ग-करणलद्धी य। चत्तारि वि सामण्णा करणं पुण होइ सम्मत्ते।।1।।
क्षयोपशमलब्धि, विशुद्धिलब्धि, देशनालब्धि, प्रायोग्यलब्धि और करणलब्धि, ये पाँच लब्धियाँ होती हैं। इनमें से पहली चार तो सामान्य हैं अर्थात् भव्य और अभव्य, दोनों प्रकार के जीवों के होती है, किन्तु करणलब्धि सम्यक्त्व होने के समय होती है।।1।।
उपशम सम्यक्त्व की अर्हता दसणमोहस्सुवसामओ दु चदुसु वि गदीसु बोद्धव्वो। पंचिंदिओ य सण्णी णियमा सो होदि पज्जत्तो।।2।।