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धवला उद्धरण
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सम्यग्मिथ्यादृष्टि की विशेषता ण य मरइ व संजममुवेइ तह देससजमं वावि। सम्मामिच्छादिट्ठी ण उ मरणतं समुग्घाओ।।33।।
सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव न तो मरता है, न संयम को प्राप्त होता है, न देशसंयम को भी प्राप्त होता है तथा उसके मारणान्तिक समुद्घात भी नहीं होता है।।33।।
__ पृथिवियों की उत्कृष्ट स्थिति एक्क तिय सत्त दस तह सत्तारह दुतिहदेक्कअधिय दस। उवही उक्कस्सट्ठिदी सत्तण्हं होइ पुढवीण।।34।।
एक, तीन, सात, दश तथा सत्तरह सागरोपम तथा दो से गुणित एक अधिक दश (2x11=22) अर्थात् बाईस सागरोपम तथा तीन से गुणित ग्यारह (3x11=33) अर्थात् तेंतीस सागरोपम, इस प्रकार सातों पृथिवियों की उत्कृष्ट स्थिति होती है।।34।।
क्षुद्रभव का परिमाण तिण्णि सया छत्तीसा छावट्ठि सहस्स चेव मरणाइं। अंतोमुहुत्तकाले तावदिया होति खुद्दभवा।।35।।
एक अन्तर्मुहूर्त काल में छयासठ हजार तीन सौ छत्तीस (66336) मरण होते हैं और इतने ही क्षुद्रभव होते हैं।।35।।
उत्तरोत्तर विशेषता आवलिय अणागारे चक्खिदिय-सोद-घाण-जिब्भाए। मण-वयण-कायफासे अवाय-ईहासुदुस्सासे।।36।।
अनाकार दर्शनोपयोग का जघन्य काल आगे कहे जाने वाले सभी पदों की अपेक्षा सबसे कम है। (तथापि वह संख्यात आवली प्रमाण है।) इससे