SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धवला पुस्तक 4 109 कालो परिणामभवो परिणामो दव्वकालसंभूओ । दोहं एस सहावो कालो खणभंगुरो णियदो ।।2।। व्यवहार काल पुद्गलों के परिणमन से उत्पन्न होता है और पुद्गलाद का परिणमन द्रव्य काल के द्वारा होता है, दोनों का ऐसा स्वभाव है। यह व्यवहार काल क्षणभंगुर है, परन्तु निश्चय काल नियत अर्थात् अविनाशी है।।2।। ण य परिणमइ सयं सो ण य परिणामेइ अण्णमण्णेहिं । विविहपरिणामियाणं हवइ हु हेऊ सयं कालो ॥3॥ वह काल नामक पदार्थ न तो स्वयं परिणमित होता है और न अन्य को अन्य रूप से परिणमाता है, किन्तु स्वतः नाना प्रकार के परिणामों को प्राप्त होने वाले पदार्थों का काल नियम से स्वयं हेतु होता है || 3 | कालाणु का स्वरूप लोयायासपदेसे एक्केक्के जे ट्ठिया दु एक्के क्का । रयणाणं रासी इव ते कालाणू मुणेयव्वा ।। 4 ।। लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर रत्नों की राशि के समान जो एक-एक रूप से स्थित हैं, वे कालाणु जानना चाहिए।।4।। सम्यक्त्व का लक्षण छप्पं च णवविहाणं अत्थाणं जिणवरो वइट्ठाणं । आणाए अहिगमेण य सद्दहणं होइ सम्मत्तं ।।5।। जिनवरोपदिष्ट छह द्रव्य अथवा पंच अस्तिकाय अथवा नव पदार्थों का आज्ञा से और अधिगम से श्रद्धान करना सम्यक्त्व है। 151 पंचत्थिया य छज्जीवणिकायकालदव्वमण्णे य। आणाज्झे भावे आणाविचरण विचिणादि ।।6।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy