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धवला उद्धरण
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पुनः इसे उत्सेध से गुणित करके वेध से गुणित करें। यह वेत्रासन के आकार वाले क्षेत्र में घनफल लाने की प्रक्रिया जानना चाहिए ।।16।। मुह-भूमिविसेसम्हि दु उच्छेहभजिदम्हि सा हवे वड्ढी। वड्ढी इच्छागुणिदा मुहसहिदा सा फलं होदि।।17।।
भूमि से मुख को घटाकर उत्सेध का भाग देने पर जो लब्ध आवे, वह वृद्धि का प्रमाण होता है। अब जिस पटल के नारकियों के उत्सेध का प्रमाण लाना हो, उसे इच्छा मानकर उससे वृद्धि को गुणित कर दो और मख का प्रमाण जोड़ दो। इसका जो फल होगा, वही इच्छित पाथड़े के नारकियों का उत्सेध समझना चाहिये।।17।।
भवनत्रिक के शरीर की ऊँचाई पणुवीसं असुराणं सेसकुमाराणं दस धणू चेय। वेंतर-जोदिसियाणं दस सत्त धण मणेयव्वा118।।
भवनवासियों के दश भेदों में से प्रथम भेद असुरकुमारों के शरीर की ऊँचाई पच्चीस धनुष और शेष नौ कुमारों के शरीर की ऊँचाई दश धनष है तथा व्यन्तर देवों के शरीर की ऊँचाई दश धनष और ज्योतिषी देवों के शरीर की ऊँचाई सात धनुष जानना चाहिये।।18।।
मुहसहिदम लमज्झं छत्तू णद्धेण सत्तवग्गेण। हंतू णे गट्ठकदे घणरज्जू होंति लो गम्हि।।1।।
लोक के मध्य को छेदकर अर्थात् मध्यलोक से दो विभाग कर, दोनों विभागों के पृथक्-पृथक् मुखसहित मूल के विस्तार से आधा करके, पुनः सात के वर्ग से गुणा करके उन दोनों राशियों को जोड़ देने पर लोक सम्बन्धी घन राजु उत्पन्न होते हैं।।1।।
चंदाइच्च-गहे हि चेव णक्खात्त-ताररूवेहि। दुगुण-दुगुणेहिं णीरंतरेहिं दुवग्गो तिरियलोगो।।2।।