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धवला उद्धरण
98 कोई जीव उत्पन्न होता है। वह और जितने भी मूली आदिक सप्रतिष्ठित प्रत्येक हैं वे प्रथम अवस्था में प्रत्येक ही हैं।।76।।
आवलियाए वग्गो आवलिया संखभागगुणिदो दु। तम्हा घणस्स अंतो बादरपज्जत्ततेऊणं।।77।।
चूँकि आवली के असंख्यातवें भाग से आवली के वर्ग को गुणित कर देने पर बादर तेजस्कायिक पर्याप्त राशि का प्रमाण होता है। इसलिए वह प्रमाण घनावली के भीतर है।।77।।
जगसे ढीए वग्गो जगसे ढीसंखाभागसंगुणिदो। तम्हा घणलोगंतो बादरपज्जत्तवाऊण।।78।।
चूँकि जगत् श्रेणी के वर्ग को जगत् श्रेणी के संख्यातवें भाग से गुणित करने पर बादर वायुकायिक पर्याप्त राशि आती है। इसलिए उक्त प्रमाण घनलोक के भीतर आता है।।78।।
सत्तादी छक्कंता दोणवमज्झा य होंति परिहारा। सत्तादी अट्ठता णवमज्झा सुहमरागा दु।।79।।
जिस संख्या के आदि में सात, अन्त में छह और मध्य में दो बार नौ है उतने अर्थात् छह हजार नौ सौ सत्तानवे परिहारविशुद्धि संयत जीव हैं तथा जिस संख्या के आदि में सात, अन्त में आठ और मध्य में नौ है उतने अर्थात् आठ सौ सत्तानवे सूक्ष्मराग वाले जीव हैं।।79।।