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________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] ओकाकी विचरतो वळी स्मशानमां, वळी पर्वतमां वाघ सिंह संयोग जो; अडोल आसन, ने मनमां नहीं क्षोभता, परम मित्रनो जाणे पाम्या योग - जो. अपूर्व० ११. घोर तपश्चर्यामां पण मनने ताप नहीं, सरस अन्ने नहीं मनने प्रसन्नभाव जो; रजकण के रिद्धि वैमानिक देवनी, सर्वे मान्यां पुद्गल अक स्वभाव जो. अपूर्व० १२. a (नमस्कार बोली कायोत्सर्ग पारवो) । पाठ ११ मो प्रत्याख्यान [ओकी साथे बे प्रतिक्रमण करे के केवळ आ प्रतिक्रमण करे त्यारे पहेलां प्रतिक्रमण पाठ १६मां बताव्या प्रमाणे अहीं प्रत्याख्यान करवू.] पाठ १२ मो जिनजीनी वाणी सीमंधर मुखथी फूलडां खरे, अनी कुंदकुंद गूंथे माळ रे, _ जिनजीनी वाणी भली रे...सीमंधर० वाणी भली मन लागे रळी, . . जेमां सार-समय शिरताज रे, जिनजीनी वाणी भली. रे...सीमंधर० गूंथ्यां पाहुड ने गूंथु पंचास्ति, प्रवचनसार रे, ज जिनजीनी वाणी भली रे.: गूंथु नियमसार, गूंथ्यं रयणसार, गूंथ्यो समयनो सार रे, जिनजीनी वाणी . भली रे...सीमंधर०
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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