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________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] [७६ अर्थ :-(तीर्थंकरोना स्तवननी प्रतिज्ञा :-) स्वर्ग, मृत्यु अने पाताल-त्रणे जगतमा धर्मना प्रकाशको, धर्मतीर्थना स्थापको अने राग-द्वेष आदि अंतरंग शत्रुओ पर विजेताओ ओवा चोवीश केवलज्ञानी तीर्थंकरो अने अन्य तीर्थंकरोतुं हुं स्तवन करीश स्तुति करीश. (स्तवन :-) श्री वृषभनाथ, श्री अजितनाथ, श्री संभवनाथ, श्री अभिनंदन, श्री सुमतिनाथ, श्री पद्मप्रभ, श्री सुपार्श्वनाथ, श्री चंद्रप्रभ, श्री पुष्पदंत अथवा श्री सुविधिनाथ, श्री शीतलनाथ, श्री श्रेयांसनाथ, श्री वासुपूज्य, श्री विमलनाथ, श्री अनंतनाथ, श्री धर्मनाथ, श्री शान्तिनाथ, श्री कुंथुनाथ, श्री अरनाथ, श्री मल्लिनाथ, श्री मुनिसुव्रत, श्री नमिनाथ, श्री अरिष्टनेमि, श्री पार्श्वनाथ, श्री वर्द्धमानस्वामी-आ चोवीस जिनेश्वरोनी हुं स्तुति करुं छु. (भगवानने प्रार्थना :-) जेओनी हुं स्तुति करूं छु, जेओ 'रजमल रहित छे, जेओ जरा-मरण बन्नेथी मुक्त छे अने जेओ तीर्थना प्रवर्तक छे ते चोवीश जिनेश्वरो अने सामान्य केवलज्ञानीओ पण मारा उपर प्रसन्न थाओ. 'जेओ, कीर्तन, वंदन अने पूजन नरेन्द्रो अने देवेन्द्रोओ पण कर्यु छे, जेओ संपूर्ण लोकमां उत्तम छे अने जेओओ सिद्धि प्राप्त करी छे ते भगवानो मने भावआरोग्य (राग-द्वेष रहित दशा) माटे बोधि अने समाधिना उत्तम वर आपो. . जेओ सर्व चंद्रोथी विशेष निर्मळ छे, सर्व सूर्योथी अधिक प्रकाशमान छे अने स्वयंभूरमण नामक महासमुद्रथी वधारे गंभीर छे ते सिद्धभगवंतो मने सिद्धि आपो. (नमस्कार मंत्र बोली कायोत्सर्ग पाळवो) .. १.. रज = द्रव्यकर्म, मल = भावकर्म. २. बोधि = नहि प्राप्त थयेल अवां सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रनी प्राप्तिने लाभ. ३. समाधि = प्राप्त थयेल सम्यग्दर्शनादिन, निर्विघ्नतापूर्वक वहन.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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