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[प्रतिक्रमण-आवश्यक भविष्य काळy जे शुभ-अशुभ कर्म ते जे भावमां बंधाय छे ते भावथी जे आत्मा निवर्ते छे, ते आत्मा प्रत्याख्यान छे.
वर्तमान काळे उदयमां आवेलुं जे अनेक प्रकारना विस्तारवालु शुभ-अशुभ कर्म ते दोषने जे आत्मा चेते छे-अनुभवे छे–ज्ञाताभावे जाणी ले छे (अर्थात् तेनुं स्वामित्व-कर्तापणुं छोडे छे), ते आत्मा खरेखर आलोचना छे. __ जे सदा प्रत्याख्यान करे छे, सदा प्रतिक्रमण करे छे अने सदा आलोचना करे छे, ते आत्मा खरेखर चारित्र छे..
ण वि सक्कदि धेत्तुं जंण विमोत्तुं जं च जं परद्रव्वं । सो को वि य तस्स गुणो पाउगिओ विस्ससो वा वि ॥४०६॥ जे द्रव्य छे पर तेहने न ग्रही, न छोडी शकाय छे, अवो ज तेनो गुण को प्रायोगी ने वैस्रसिक छे. ४०६.
अर्थ:-जे परद्रव्य छे ते ग्रही शकातुं नथी तथा छोडी शकातुं नथी, ओवो ज कोई तेनो (-आत्मानो) 'प्रायोगिक तेम ज वैससिक गुण छे.
मोक्खपहे अप्पाणं ठवेहि तं चेव झाहि तं चेय । तत्थेव विहर णिचं मा विहरसु अण्णदब्बेसु ॥४१२॥ तुं स्थाप निजने मोक्षपंथे, ध्या, अनुभव तेहने;
तेमां ज नित्य विहार कर, नहि विहर परद्रव्यो विषे. ४१२. · अर्थ :-(हे भव्य !) तुं मोक्षमार्गमा पोताना आत्माने स्थाप, तेनुं ज ध्यान कर, तेने ज चेत-अनुभव अने तेमां ज निरंतर विहार कर; अन्य द्रव्योमा विहार न कर.
१ प्रायोगिक = विकारी
२ वैससिक • शुद्ध