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प्रतिक्रमण-आवश्यक
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सामायिक पाठ
मंगलाचरण
नमोक्कार मंत्र णमो अरिहंताण, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सबासाहूणं॥
अर्थ :-अरिहंतोने नमस्कार हो, सिद्धोने नमस्कार हो, आचार्योने नमस्कार हो, उपाध्यायोने नमस्कार हो, (अने) लोकमां सर्व साधुओने नमस्कार हो।
सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् । माध्यस्थभावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव ! ।।१।।
अन्वयार्थ :-[देव ! ] हे जिनेन्द्र देव! [मम] मारो [आत्मा] आत्मा [सत्वेषु] प्राणीओ प्रत्ये [ मैत्रीं] निर्वैरबुद्धि [गुणिषु] गुणी जीवो प्रत्ये [प्रमोदं] प्रमोद भाव [क्लिष्टेषु जीवेषु] दुःखी जीवो प्रत्ये [कृपापरत्वम् ] करुणाभाव (अने) [विपरीतवृत्तौ] विपरीत वृत्तिवाळा जीवो प्रत्ये [माध्यस्थभावं] माध्यस्थभाव [सदा] निरंतर [विदधातु] धारण करो।
विशेषार्थ १. सामायिक व्रत पांचमां गुणस्थानवाळा सम्यग्दृष्टि जीवोनुं एकव्रत छ। ते शुभ भाव छ। जेओने पोताना आत्मस्वरूप, भान न होय तेओने साचुं सामायिकव्रत होतुं ज नथी। .
२. ज्यारे सम्यग्दृष्टि जीव पोताना आत्मस्वरूपमां स्थिरता ★ आ पंच परमेष्ठी, विशेष स्वरूप 'मोक्षमार्गप्रकाशक' ग्रंथना पान २ थी पान
६ सुधीमां छे, त्यांथी जिज्ञासुओओ वांची मनन करवू ।