________________
१२८]
[प्रतिक्रमण-आवश्यक आलोचनानो पाठ करे छे ते शीघ्र मोक्ष प्राप्त करे छे. तेथी मोक्षाभिलाषीओओ श्री अरहंतदेव सामे श्री पद्मनन्दि आचार्य द्वारा रचायेली आलोचना नामनी कृतिनो पाठ त्रणे काल अवश्यमेव करवो जोइओ.
इति आलोचना अधिकार समाप्त
आलोचना संभळावनार परमकृपाळु श्री सद्गुरुदेव उपकारदर्शन
अहो! अहो ! श्री सद्गुरु, करुणासिंधु अपार; आ पामर पर प्रभु कर्यो, अहो ! अहो! उपकार. शुं प्रभु चरण कने धरूं, आत्माथी सौ हीन; ते तो प्रभुले आपियो, वर्तु चरणाधीन.
आ देहादि आजथी, वर्तो प्रभु आधीन; दास दास हुं दास छु, आप प्रभुनो दीन. षट् स्थानक समजावीने, भिन्न बताव्यो आप; म्यानथकी तरवारवत्, जे उपकार अमाप. जे स्वरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनंत; समजाव्युं ते . पद नमुं, श्री सद्गुरु भगवंत. परम पुरुष, प्रभु सद्गुरु, परम ज्ञान सुखधाम; जेणे आप्युं भान निज तेने सदा प्रणाम. देह छतां जेनी दशा, वर्ते देहातीत; ते ज्ञानीना चरणमां हो! वंदन अगणित.