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[प्रतिक्रमण-आवश्यक मोक्षमा जइ सिद्धिपदने प्राप्त करे छे; सिद्धोनुं निश्चयनयथी कोइ नाम नहि होइने ते नाम रहित थइ जाय छे अने व्यवहारनयथी तेने ब्रह्मा आदि नामथी संबोधवामां आवे छे.
३०. अर्थ:-हे केवळज्ञानरूप नेत्रोना धारक जिनेश्वर ! मोक्ष प्राप्त करवा. अर्थे आपे जे चारित्रनुं वर्णन कर्यु छे ते चारित्र तो आ विषम कलिकामां (दुषम पंचमकालमां) मारा जेवा मनुष्य घणी कठिनताथी धारण करी शके तेम छे. परंतु पूर्वोपार्जित पुण्योथी आपमां मारी जे दृढ भक्ति छे ते भक्ति ज, हे जिन! मने संसाररूप समुद्रथी पार उतारवामां नौका समान थाओ. अथात् मने संसारसमुद्रथी आ भक्ति ज पार उतारी शकशे.
भावार्थ :-कर्मोनो नाश कर्या विना मोक्ष-प्राप्ति थइ शकती नथी अने कर्मोनो नाश तो आप द्वारा वर्णित चारित्र (तप) थी थाय छे. हे भगवन! शक्तिना अभावथी आ पंचमकालमां मारा जेवो मनुष्य ते तप करी शकतो नथी; तेथी हे परमात्मा ! मारी ओ प्रार्थना छे के सद्भाग्ये आपमां मारी जे दृढ भक्ति छे तेनाथी मारा कर्म नष्ट थइ जाओ अने मने मोक्षनी प्राप्ति थाओ.
मोक्षपदनी प्राप्ति अर्थे प्रार्थना :
३१. अर्थ:-आ संसारमा भ्रमण करी में ईंद्रपणुं, निगोदपणुं अने बन्ने वच्चेनी अन्य समस्त प्रकारनी योनिओ पण अनंतवार प्राप्त करी छे. तेथी ओ पदवीओमाथी कोइ पण पदवी मारा माटे अपूर्व नथी; किन्तु मोक्षपदने आपनार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्रना क्यनी पदवी जे अपूर्व छे ते हजी सुधी मळी नथी. तेथी हे देव ! मारी सविनय प्रार्थना छे के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्रनी पदवी ज पूर्ण करो..
भावार्थ :-यद्यपि, संसारमा इन्द्र आदि पदवीओ छे ते समस्त