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६३. अनन्त कृपा हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! तेरी अनन्त कृपा सेमेरे जीवन का कण-कण सौरभ से भर उठा है दिदिगन्त में तेरी करूणा रूपी सौरभ महक उठी है जल में, थल में, गगन में, समस्त भू मण्डल में एक तेरी ही शक्तियाँ बह रही हैं वायु तेरी महिमा के गीत गा रही है नदी की लहरें संगीत दे रही हैं गगन इन सबको प्रणाम कर रहा है सर्य तेरी शक्तियों को उजागर कर रहा है। हे मेरे प्रभो!
तेरी ही प्रशान्त विभावरी पर मैं तन-मन प्राण से न्यौछावर हूँ मैं समस्त शक्तियों सहित तेरे गुणगान को आतुर हूँ मैं सम्पूर्ण शक्तियों सहित तेरे श्री चरणों की छवि निहार रहा हूँ मैं तेरे अनन्त सौन्दर्य के प्रति समर्पित हो गया हूँ हे मेरे प्रभो, हे मेरे विभो! मैं सर्वात्मना समुपस्थित हूँ तेरे श्री चरणों में तूने मुझे वचन दिया था अब उसके निर्वाह का समय आ गया है मेरे प्रभु अपना हृदय खोल कर मुझे अपने सीने से लगा ले अपने श्री चरणों में स्थान दे दे हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!
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