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५५. मतवाला
हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!
मेरे अनन्त आनन्दघन प्रभो, तेरे रूप सौन्दर्य, श्री सन्निधि का पान कर
मैं मतवाला हो उठा हूँ!
मेरे समस्त ताप, सन्ताप, त्रय ताप नाश को प्राप्त हो गये हैं आनन्द की ऊर्जस्विता मेरे हृदय के सम्पूर्ण तापों का विनाश करती हुई
अनन्त आनन्द की रमणीय सृष्टि के सृजन में लीन है।
हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!
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