________________
५१. ऊषा सुन्दरी ओ ऊषा सुन्दरी! तेरे आगमन से धरती के कण-कण में उल्लास छा गया है अंधकार का नाश होकर प्रकाश आ गया हैजीवन की ऊषा सुन्दरी भी आज रमणीय परिधान पहन कर उपस्थित है पहले ही हास-परिहास में जीवन के समस्त दु:ख, समस्त बुराईयाँ, समस्त अंधकार समाप्त हो गयेआनन्द, प्रेम-सौजन्यता का नव भानु उदित हुआ प्रेम का गुलाबी रंग जीवन के कण-कण को आनन्दित कर गया यही तो प्रेम का द्वार है- प्रभु का द्वार हैअनन्त की आराधना का शंखनाद है। हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!