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३४. आत्म-रथ मेरे जीवन धन, अनन्त की अनन्त आराधना में रत मेरा जीवन प्रभु ध्यान निरत प्रभु के स्वरूप की मनोहर छटा से अभिसिक्त होकर मैं अपने को दिव्य अनुभव कर रहा हूँ आनन्द की इस उजागर वेला में अनन्त अनन्त सूर्यों की चमक लेकर मेरी आत्मा अनन्त का पथ प्रकाशित कर रही है मेरा आत्म रूपी रथ अनन्त के पथ पर दौड़ रहा है अनन्त के स्पन्दनों से मेरा तार-तार झंकृत हो उठा है आनन्द से भर उठा है प्रेम की अठखेलियाँ कर रहा है हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!