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१४. जीवन की बगिया जीवन की बगिया में कर्म रूपी पुष्य खिले हैं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी फल लगे हैं भाव्य की टहनी पर अर्थ और काम के लाल-लाल फूल खिल उठे हैं - दीन-दुनियाँ के तन-मन और प्राणों को आकर्षित कर रहे हैंझूम-झूम कर कह रहे हैंइस समस्त विश्व पर हमारा ही साम्राज्य है हे मेरे आत्म-देव! कुछ और आगे बढ़ो परम पुरुषार्थ की टहनी पर दो दिव्य फूल महमहा रहे हैं। 'धर्म' और 'मोक्ष' श्वेत, शुभ्र और उज्ज्वल अनन्त सुख, अनन्त आनन्द, अनन्त ज्ञान से विभूषितमेरे आत्मदेव! तू उन्हें छोड़ कर, इन्हें प्राप्त कर।