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१३. प्रणय-वेला हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! मेरे कण-कण में आनन्द छा रहा हैएक कण से दूसरे कण में आनन्द की सहस्त्र गुणी अभिवृद्धि हो रही हैप्रत्येक कण में अनन्त आनन्द छिया हुआ है, जो प्रकट हो रहा हैमैं अलौकिक आनन्द का पान कर रहा हूँमेरे अन्तस्थ विभो, तेरा अनन्त ज्ञान मेरे तिमिर अज्ञान को हर रहा
शभ ज्योति, अनन्त आनन्द को भर रही हैतू और मैं, में और तू इस पावन पुनीत प्रणय वेला में एक हो रहे हैं अपने आप को, एक-दूसरे में खो रहे हैं मेरा मैं समाप्त हो रहा है। हे मेरे अन्तस्थ विभो!