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७. मन रूपी धरती हे मेरे प्रश्नो, हे मेरे विनो! मन रूपी धरती है करुणा रूपी वर्षा होती है धरती कोमल हो जाती है अंकुर उग आते हैं धर्म के भी राग के भी काम के भी द्वेष के भी! व्यर्थ के अंकुरों को हटा देना पड़ता है। रह जाते हैं सिर्फ धर्म रूपी गुलाब के अंकुर मेरे जीवन से भी राग के द्वेष के काम के क्रोध के अंकुरों को हटाने के बाद रह जाते हैं एक मात्र आत्मा की उर्जस्विता के अंकर! हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!