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५. आशा दीप
हे मेरे प्रभो, हे मेरे विभो !
प्रकाश की एक क्षीण रेखा
आकाश से पृथ्वी पर
उतर आई
उसका नामकरण किया-आशा
सहस्त्रों अंधकारमय रजनियों को
उसी आशा ज्योति ने ज्योतिर्मय बना दिया
वर्तमान का यह क्षण सृजनशील मानव के हाथों में उपस्थित है,
इस आलोकमयी पुण्यवेला में
आशा के आलोक में
रश्मियों के प्रकाश में
अंधकार का आवरण दूर कर
सत्य का द्वार उद्घाटित कर दे शुद्ध और शाश्वत आत्म-ज्योति को प्रकट करदे हे मेरे प्रभो ! हे मेरे विभो !
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