SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुदेव कहते हैं... क्षत्रिय की तलवार का उपयोग क्षीण-कमजोर प्राणियों के वध के लिए नहीं होता। इसी प्रकार, धर्मात्मा की बुद्धि का उपयोग क्षुद्र विचारों और दूसरों पर वर्चस्व जमाने के लिए नहीं होता। गुरुदेव, आपका स्वास्थ्य कुछ ज्यादा ही नरम था। पैरों में लकवे का सामान्य असर था । आहार की कोई रुचि नहीं थी।शरीर में कमजोरी भी थी। सोने के बाद आप अपने आप बैठ सकें ऐसी कोई संभावना तो थी ही नहीं, परन्तु हम साधुओं को भी आपको बिठाने में बड़ी परेशानी होती थी। इन तकलीफों में कुछ आराम पाने के लिए डॉक्टर ने आपको पलंग पर सुलाने का विशेष अनुरोध किया था। अस्पताल से पलंग मैंगवाकर रख दिया और वह भी हैंडलवाला, जिससे आपको बैठने में कोई तकलीफ न हो।आपकी बिल्कुल अनिच्छा के बावजूद आपको पलंग पर सुलाने में हमें सफलता तो मिली, लेकिन परेशानी तो तब हुई जब हमने हेंडल का उपयोग करके आपको बिठाया। आपने पूछा, "मैं बैठा किस तरह?" पलंग से हेंडल निकालकर, गुरुदेव, आपको दिखाया और आपने तुरन्त पूछा, "इस हेंडल को पलंग में डालो तब पलंग के इस पोले हिस्से को पूँजना कैसे संभव है? नहीं! इस पलंग पर मैं हर्गिज़ नहीं सोऊँगा।" और आपने पलंग छोड़कर अपनी पाट का ही उपयोग किया! गुरुदेव! "यतना ही संयमजीवन का प्राण है।" इस शास्त्रपक्ति को आपने जीवन में नजाने कितनी बार दोहराया होगा कि ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में भी आपको यतना याद आ गई । यतना के प्रति ऐसे प्रेम का यह दान आप हमें नहीं देंगे?
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy