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अमावस्या के प्रगाढ अन्धकारमें जहाँ अपना शरीर भी हमें दिखाई नहीं । देता, वहाँ भी "मैं हूँ" ऐसा अनुभव होता है, जो आत्माका बहुत बड़ा प्रमाण है अँधेरेमें अमुक वस्तु है या नहीं - ऐसा सन्देह हो सकता है, परन्तु मैं हूँ या नहीं ऐसा सन्देह किसी को नहीं होता. प्रात: काल उठते ही हम यह अनुभव करते है कि रातको अच्छी गहरी नींद आई थी अथवा अच्छे-बुरे सपने आये थे. नींद का सुख लेने वाली या सपना देखने वाली आत्मा ही होती है. "मैं सुखी हूँ मैं दुखी हूँ-यह शरीर मेरा है" ऐसा अनुभव आत्माको ही होता है, जड़ पदार्थों को नहीं. जैसे बिना आग के धुआँ नहीं होता, वैसे ही बिना भोगी के भोग्य नहीं होता. शरीर भोग्य है इसलिए भोगी आत्मा भी है. शरीर क्या है ? पाँव रूपी दो खम्भों पर टिका हुआ एक महल है जिसमें आँख, कान, नाक आदि झरोखे है-पेट जैसा रसोईघर है-मूत्रालय है-संडास भी है. इस महल की देख-रेख करने वाली, इस महलमें निवास करने वाली, इस महल की मालकिन कौन है ? आत्मा. आत्मा शरीर की मालकिन है - मन मैनेजर है कडवी दवा रूचती नहीं, परन्तु बीमारी में पीनी पड़ती है. कौन पिलाता है ? बीमारी में मिठाई खाने की इच्छा होती है मिठाई खाने से उस समय हमें क्विनाइन पीनेके लिए और मिठाई का मोह छोड़ने के लिए प्रेरित करती है. इन्द्रियों के बीच मतभेद हो जाय झगड़ा हो जाय तो न्याय कौन करता है। आँख जिसे शक्कर कहती है, उसी का जीभ याद नमक बताता है तो उस समय फैसला करने वाला कौन है ? आत्मा. धन, तिजोरी, शरीर आदि खुद अपने पर ममता नहीं रख सकते मेरा धन, मेरी तिजोरी, मेरा शरीर ऐसी ममता जो रखती है, वही आत्मा है स्वादिष्ट रसोई, जिसमें परोसी गई, ऐसी थाली सामने रखी है. आप आनन्द से खाना प्रारंभ करते है कि उसी समय फोन से या टेलीग्राम से आपको सूचना मिलती है कि भाव अचानक उतर जाने से व्यापार में भारी घाटा हुआ है हजारों रूपयों का नुकसान हो गया है. यह सूचना पाते ही आप उदास हो जाते हैं. थाली छोड़ कर उठ जाते है सिर पकड़
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