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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri Achary एक नजर किसीने ठीक ही कहा है : यस्याग्रे न गलति संशयः समूलो नैवासी क्वचिदपि पण्डितोक्तिमेति ॥ अर्थात् जिसके सामने जानेपर अपना संशय मूल सहित गल न जाय, उसे कभी पण्डित नहीं कहा जा सकता. अपने सैकड़ों छात्रोंकी शंकाओंका समाधान करने वाले इन्द्रभूति आदि पण्डित ही नहीं, महापण्डिल कहलाते थे, परन्तु स्वयं उन्हींके हृदयमें वर्षोंसे एक-एक शंका छिपी हुई थी. किसके हृदयमें कौन-सी शंका थी? उसका संक्षिप्त विवरण देखिये :१. इन्दभूति : जीव है या नहीं ? २. अग्निभूति : कर्म है या नहीं ? ३. वायुभूति : जीव और कर्म भिन्न है या अभिन्न ? ४. व्यक्त : पञ्च महाभूत है या नहीं ? ५. सुधर्मा : पुरुष मरकर पुरुष ही होता है या पशु भी ? ६. मण्डित : बन्ध-मोक्ष होता है या नहीं ? ७. मौर्यपुत्र : देव होते है या नहीं ? ८. अकम्पित : नारक (नरक निवासी प्राणी) होते है या नहीं ? ९. अचलभ्राता : पुण्य-पाप होते है या नहीं ? १०. मेतार्य : परलोक होता है या नहीं ? ११. प्रभास : निर्वाण (मोक्ष) का कहीं अस्तित्व है या नहीं ? इन ग्यारह महापण्डितों की उपर्युक्त ग्यारह शंकाओंका निराकरण सर्वज्ञ प्रभु महावीरस्वामी ने किस प्रकार किया ? इसका विस्तृत विवरण ही 'संशय सब दूर भये' इस छोटी-सी पुस्तक का प्रतिपाद्य विषय है इन ग्यारह महापण्डितोंके साथ प्रभु का जो संवाद हुआ था, वही "गणधरवाद" कहलाता है. इस गणधरवाद के फलस्वरूप एक ही दिनमें प्रभुको कुल ४४११ शिष्यरत्नोंकी प्राप्ति हुई थी, उनकी गणनाके लिए इस गाथा से सहायता मिलती है: For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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