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साथ झगड़ने गया । शाम तक वह उसे सुनाता रहा । किंतु पैरिक्युलस एक भी शब्द नहीं बोला । इससे धर्मगुरु थक गया । परिक्युलस जो लिख रहा था, वही लिखता रहा । अगर हम में कोई खराबी नहीं है तो बुरे व्यक्ति द्वारा की निंदा क्यों सुननी चाहिए
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जहाँ लकड़ियाँ या तिनके होते हैं, वहीं आग में वृद्धि होती है । पैरिक्युलस ने उसे ठंडा पानी पिलाया और अपने पुत्र को दीपक लेकर उसे उसके मुकाम पर छोड़ने जाने को कहा । लेकिन धर्मगुरुने अब वहाँ से जाने से ही इन्कार कर दिया । धर्मगुरु ने पूछा, “आपने ऐसा कौनसा तत्त्व पा लिया है कि मेरी गालियाँ भी आप तीन घंटों से इतनी शांति से सुन रहे हैं ?” उसका उत्तर सुनकर धर्मगुरु ने कहा, “मुझे अपनी आत्मा का ज्ञान हो गया है ।"
पारस पत्थर का स्पर्श होते ही लोहा सुवर्ण बन जाता है, उस प्रकार संतों के समागम से हमारा जीवन भी सुवर्णमय बन जाता है
मनन, चिंतन ध्यान और मौन में रहने वाला ही सच्चा मुनि है । निज स्वभाव में रममाण रहनेवाला ही मुनि है
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