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५०. सृजन एक श्रम से सृजन होता है और दूसरे से विनाश । व्यक्ति के मनमें दो प्रकार के विचार आते हैं । धूल के अनुसार चलनेवाला ऊर्ध्वगामी बनता है, और उसके विरुद्ध चलनेवाला अधोगति में चला जाता है । ज्ञानी हर एक क्रिया कर्मों को खपाने के लिए करता है, जबकि अज्ञानी की प्रत्येक क्रिया बंधन के लिए होती है ।
लंडन में दीनबंधु एण्डूज एक शराबी को समझाने. रोज उसके पास जाते थे । शराबी कहता, “मुझे भगवान में श्रद्धा नहीं है ।" तब दीनबंधु कहते, भगवान् को तुम में विश्वास है ।" प्रकाश को श्रद्धा है कि वह अंधकार को दूर कर सकेगा, उसी प्रकार ज्ञानी को विश्वास होता है कि शराबी में, और चोर में भी दिव्य आत्मा का निवास है । उसी दिव्य आत्मा को ऊपर उठा सकूँगा ही, आत्मा को परमात्मा बना कर रहेगा।
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