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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ANDAR Pat ४३. प्रेम जैसी मेरी आत्मा है, वैसी ही आत्मा जगत् के अन्य प्राणियों में भी सन्निहित है । जिस प्रकार मुझे सुख पसंद है और दुःख पसंद नहीं है, उसी प्रकार जगत् के सर्व जीवों को भी सुख पसंद है। खराब काम करनेवाले को धिक्कारना उचित नहीं है, वरन् उसे प्रेम से सन्मार्ग पर लाना चाहिए । हम जब कभी खराब वातावरण में घिर जाते हैं, तब न करने जैसा कार्य भी कर बैठते हैं । उस समय संतों की वाणी और संतों के आशीर्वाद ही हमारे पापों को धो सकते हैं। प्रभु के पास तो वेश्या, चोर, व्यभिचारी, शराबी सब आये, लेकिन प्रभु ने उनका तिरस्कार नहीं किया, बल्कि उन लोगों को प्रेम से शुभ तत्त्व में जोड़ कर उनका हृदय परिवर्तन कर दिया । प्रभु के पास तो करुणा का स्रोत बहता ही रहता है, इसीलिए वे समस्त जगत् सुखी बने, कर्मों से मुक्त बने और मोक्ष के अनंत सुख प्राप्त करे ऐसी कामना करते हैं। SIA NTUAT CR ६० For Private And Personal Use Only
SR No.008736
Book TitleSamvada Ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1990
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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