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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir aran ३५. विवेक विवेक अर्थात् अच्छी बुद्धि, जो हमें मिली है । पागल को देखकर हमें मन. में उसके लिए दया जागृत होती है क्योंकि पागल के पास विवेक नहीं होता । नयन, नासिका, कान, मुख एवं शरीर तो हमें और पागल को समान ही मिले हैं । लेकिन हम वही देखते हैं, जो हम देखना चाहते हैं, जब कि पागल मनुष्य जो नहीं देखने जैसा है वही देखता है और जो बोलने जैसा नहीं है, वही बोल देता है । किंतु आज तो हम भी जो नहीं देखने जैसा है वही देखते हैं । इसीसे हमारा जीवन कटु हो गया है । आज इन्सान दुःखी है, क्योंकि उसने उलटा रास्ता अपनाया है । उसने इन्द्रियों का स्वच्छंद और विवेकहीन उपयोग करना शुरू कर दिया है । अगर जीवनसागर में तैर नहीं सकेंगे तो जीवन व्यर्थ हो जायेगा । मनुष्यजीवन प्राप्त करके डूबना नहीं है, तैरना है : इन्द्रियों के द्वारा तैरना है । जो मिला है उसका सदुपयोग करें। UAT ५२ For Private And Personal Use Only
SR No.008736
Book TitleSamvada Ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1990
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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