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अरिहंतों का ज्ञान होता है ।
हम सिद्धों को देख नहीं सकते, किंतु उनके स्वरूप को समझ सकते हैं । कर्मों से सर्वथा मुक्त होने पर सिद्ध बनते हैं । सिद्धों ने कर्मों का समूल छेदन कर डाला है । स्वभाव का आनंद प्राप्त करनेवाले सिद्ध हैं ।
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* तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो ? तुम क्या लाये थे, जो तुमने खो दिया ? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया ? न तुम कुछ लेकर आये थे । जो लिया यहीं से लिया जो दिया, यहीं पर दिया, जो लिया इसी (भगवान) से लिया जो दिया, इसी को दिया, खाली हाथ आये, खाली हाथ ही चले । जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का होगा, तुम इसे अपना समझ के मग्न हो रहे हो । बस यही समझ तुम्हारे दुःखों का कारण है ।
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