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मनुष्य के दुःख का मूलभूत कारण उसका अहम् ही है ।
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वर्षाऋतु में नदी में बाढ़ आने पर अकड़ कर खड़े रहनेवाले पेड बह जाते हैं, किन्तु बेत के पेड़ झुक जाते हैं, इसी से वे पानीं में बह नहीं जाते । उनमें झुक जाने की जो वृत्ति है, जो विशेषता है, उसी के कारण अपने सर्वनाश को आमंत्रण नहीं देते हुए वे बाढ़ के उतर जाने पर पुनः खड़े हो जाते हैं ।
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मोहराजा का साम्राज्य 'अहम्' और 'मम' के ऊपर ही टिका हुआ है |
अहम् के कारण न सुनना अच्छा लगता है, न बोलना अच्छा लगता है ।
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क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो ? क्यों व्यर्थ डरते हो ? कौन तुम्हें मार सकता है ? आत्मा न पैदा होती है न मरती है ।
जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है । जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा । भूतकाल का पश्चात्ताप न करो, भविष्य की चिन्ता न करो । वर्तमान चल रहा है ।
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