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४. अहम् ज्ञानसार' में उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज बताते हैं कि इस संसार में दो परस्पर विरोधी तत्व कार्य कर रहे हैं : प्रकाश और अंधकार, सत्य और असत्य, मृत्यु और अमरता उसी तरह राग और द्वेष ।
जब जीवन में राग-द्वेष शांत हो जाते हैं, तब मोक्ष प्राप्त होता है । राग-द्वेष के संघर्ष का नाम ही तो संसार है । जो आत्माएँ इस संघर्ष से मुक्त हो जाती हैं, वे मोक्ष पाती हैं । राग-द्वेष से मानसिक क्लेश होता है, सुख की या समाधान की वृत्ति दूर होती है । राग और द्वेष के कारण आत्मा का उद्धार नहीं होता । वे आत्मा को निर्मलता, उदारता पवित्रता आदि स्व' भावों की ओर जाने नहीं देते । इससे कर्मबंधन अधिक होता है । मोहराजा के 'मैं और मेरा -इन दो मंत्रों ने ऐसा जादू किया है कि हम मुग्ध, मूढ़ बन जाते हैं । गुजराती में हु' (मैं) के जैसा वक्र अक्षर और कोई नहीं है । जब आत्मा में अहम् का प्रवेश हो जाता है, तब वह भी वक्र बन जाती है । बाहुबली और भरत के बीच युद्ध का कारण अहम् ही था । अहम् की वजह से ही तो हम संसार में भटक रहे
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