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आम के समान मधुर होता है । बुढ़ापे में अत्यंत भाव से, भक्ति से, प्रसन्नता से, उल्लास से, आनंद से प्रभु का दर्शन, पूजन, स्मरण, कीर्तन करना है । जवानी में यदि सुन्दर पठन, सुन्दर अध्ययन, और सुन्दर श्रवण प्राप्त हुआ हो तो बुढ़ापे में उच्च प्रकार का जीवन जीया जा सकता है । वीणा को यदि बेसुरे ढंग से बजाया जाय तो वह सुनना हमें पसंद नहीं आता । परंतु यदि उसे संवादिता से बजायें, तो उसमें से सबको प्रसन्न करनेवाले मधुर सूर निकलते हैं ।
मन को संवादित करने से हमारा दिमाग बुढ़ापे में भी नियमित रूप से काम कर सकता है ।
जीवन में हमें संवाद, शांति और स्थिरता को स्थान देकर सर्व के साथ 'स्व'-आत्मा- की सेवा करके उसका उद्धार करना है।
दुःखी में दुःखी क्रोधी व्यक्ति है और सुखी में सुखी प्रेमी ही है । अतः क्रोधी के प्रति करुणा दर्शानी चाहिए ।
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