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७७. दिव्यता एक श्रावक एक साधु की बहुत भक्ति करता था । साधु समता में लीन थे । एक दिन जब साधु मग्न थे तब भैंस को स्नान कराते हुए ग्वाले के हाथों से साधु पर थोड़ा पानी गिर गया । ध्यान पूर्ण होने पर साधु ने ग्वाले को डाँटा । यह देखकर श्रावक वहाँ से चला गया।
क्रोध का शमन होने और समता को प्राप्त होने पर साधुने ग्वाले से क्षमा माँगी । बाद में वह श्रावक भी वापस आया और साधु की भक्ति करने लगा।
साधुने इसका कारण पूछा । श्रावक ने कहा, “आपने क्रोध किया, तब परमात्मा आपके पास से चले गये थे । याने शुभ परमाणु, प्रेम, मैत्री, क्षमा, समता चले गये थे, दिव्यता चली गई थी । अब उनके लौट आने से मैं भी लौट आया हूँ।"
जैसा संग करोगे, वैसा ही रंग प्राप्त करोगे।
गटर का पानी भी गंगा में मिलकर स्वच्छ हो जाता है । सज्जन दुर्जन को भी सज्जन बनाते हैं, लेकिन स्वयं गंगाजी जब सागर में जाकर मिलती है, तब उनका पानी नमकीन हो जाता है ।
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