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७५. सीख मरते वक्त बाप ने बेटे से कहा, “गाँवगाँव में घर बाँधना, धूप में भटकना नहीं और मीठा भोजन खाना ।" बेटा इसका अर्थ न समझ सका, लेकिन बाप के एक वृद्ध मित्र ने इसका अर्थ समझाया
(१) गाँव-गाँव घर बाँधना अर्थात् लोगों के साथ अच्छा संबंध रखना ।
(२) धूप में नहीं घूमना याने सुबह से सूर्यास्त तक दुकान में बैठ कर धंधा करना ।
(३) मीठा खाना अर्थात् खूब श्रम करके खाना, जिससे जो भी खाया जाय वह मीठा लगे।
बिना श्रम किये प्राप्त पैसे की कोई कीमत नहीं है । बिना श्रम के प्राप्त पैतृक संपत्ति को पुत्र स्वच्छंदता- पूर्वक उड़ा देता है । श्रम में रस है, आनंद है, सुख है, शांति
और समता है । साधु श्रम कर के ही सिद्धि प्राप्त करते हैं । इसीलिए वे श्रमण' कहलाते हैं । साधु श्रम करके, आत्ममंथन करके, आत्मा का गोरस बनाकर लोगों को उपदेश रूपी नवनीत देते हैं ।
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