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१ थी । दान मोक्ष का बीज है । शुद्ध भावना से
सुपात्र को दान देने से आत्मा क्रमशः आगे | बढ़ती हुई निर्वाण प्राप्त करती है ।
राह भूले हुए मुनियों को नयसार ने मार्ग बताया, तब गुरु ने उसे भव-अटवी में से बाहर निकलने का मार्ग दिखाया और नवकार मंत्र दिया । धन का दान करने से परिग्रह से मुक्त हो सकते हैं, उससे मूर्छा का त्याग होता है ।
इस जीवन का हेतु क्या है ? ऐसा विचार केवल मनुष्य को ही आता है, तिर्यंच ऐसे विचार नहीं करते । उसे आत्मा का विचार नहीं आता । मनुष्य को खाना-पीना मिल जाय तो भी आत्मा का विचार आता है । वह जानता है, कि यहाँ जो प्राप्त है, उसे छोड़ना है । मनोरथ कभी भी पूरे नहीं होते, इसलिए जो प्राप्त है, उसे पहले से छोड़ देने में ही सुख है।
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