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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अधिकारपदं प्राप्य नोपकारं करोति यः । अकारस्य ततो लोपः 'क' कारो द्वित्वमाप्नुयात् ।। (अधिकार पद पर रह कर जो उपकार नहीं करता, उसक 'अ' का लोप हो जाता है और 'क' का द्वित्व अर्थात “अधिकार” का “धिक्कार" हो जाता है) जो अधिकारी अपने उच्च पद क अनकल निर्धारित कर्तव्य का पालन नहीं करता, वह धिक्कार का पात्रा बनता है। अपने से उच्च अधिकारियों के सामने वह डरता रहता है । इसके विपरीत कर्तव्य का पालन निर्भय रहता है । निभयता क गुण ने एक साधारण माली को राष्ट्रपति पद तक पहुंचा दिया था । उस माली का नाम था-अब्राहम लिंकन । एक अनार का रस निकालकर जब उसने अपने मालिक को पीन क लिए दिया तो एक पूंट लेते ही मालिक ने उसे डाँटा : "अरे ! यह रस तो कड़वा लग रहा है ? क्या तम जानतें नही ? लिंकन ने कहा :- “बिल्कुल नहीं; क्योंकि में पेड़ोको सींचने का काम करता हूँ, फल चरखने का नहीं !" इस उत्तर से मालिक उसकी प्रामाणिकता पर प्रसन्न हआ और उसे व पद पर नियुक्त किया । इसी प्रकार क्रमशः आगे बढ़ता हआ एक दिन वह राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित हो गया । यदि अपराध हो जाय तो निर्भय व्यक्ति प्रायश्चित से पीछे नहीं हटता। द्रढप्रहारी ने चार व्यक्तियों की हत्या कर दी थी; किन्तु प्रायश्चित्त करत के लिए साधु बनकर वह उसी गाँव में पहुँचा । लोगों ने उस पर पत्थर बरसाये, गालियाँ बरसाईं, थूका, हर तरह से उसे अपमानित किया; परन्तु वह न डरा , न भागा ! “मेरे कर्मों की निर्जरा हो रही है" एसा सोचकर उसने सारे उपसर्ग सह लिये । फलस्वरूप वहीं खड़े खड़े उसे केवलज्ञान प्राप्त हो गया ! इससे विपरीत लक्ष्मणा साध्वी ने लोक निंदा के भय से मायापूर्वक प्रायश्चित किया । इससे पाप का जहर नहीं उतरा और उसे अनेक भत्रों में भटकना पड़ रहा है । प्रायश्चित वह पवित्रा झरना है, जिसमें स्नान करने से आत्मा क सारे दाग धुल जाते हैं । ७८ For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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