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है ? आत्मा कोई कचरा-पटी नहीं है कि उसे कसे भी दुर्भावों से भर दिया जाय !
उदाहरणार्थ आँख ही उन्नति और अवनति का कन्द्रबिन्दु है । आँख से प्रभु-पतिमा के दर्शन करक हृदय में उत्तम भाव भी लीये जा सकते हैं और भौतिक या शारीरिक सौन्दर्य को देखकर हृदय में कामना का कीचड़ भी भरा जा सकता है । जो विवेकी है, वह हृदय को मलिन करने की भूल कसे कर सकता है ?
दो दृष्टियाँ होती हैं- मिथ्या और सम्यक । मिथ्या दृष्टि जीव को सर्वा भोगसुख दिखाई देता है और सम्यग्दृष्टि को आत्मिकसुख ।
किसी बगीच में गलाव क पौध को देखकर एक बालक रोने लगा । कारण पलने पर उसने कहा :- "इतने सुन्दर फूल क साथ काटे निकल आये !" दूसरा बालक उसी पौध को देखकर हंसने लगा । उसका कहना था :- "इन तीख काटों में भी कितने सुन्दर फूल खिल रहे हैं ?"
सम्यग दृष्टि के अभाव का ही यह दुष्परिणाम है कि हम याद रखने की बातें भल जाते हैं और भूल जाने की बातें याद रखते हैं । व्याख्यान मं सुनी प्रभु महावीर की वाणी पर जात ही भूल जाचे हैं और यादि किसी न कोई कठोर वचन कह दिया हो तो उसे जीवन-भर याद रखते है और परेशान हात रहते हैं । प्रभ की वाणी का एक वाक्य भी उद्धार कर सकता है - यदि सनकर उसे याद रखा जाय । _ मरने से पहले, रोहिणीया चार से, उसक पिता ने कह दिया था कि महावीर की वाणी कभी मत सुनना ।
एक दिन रोहिणय को उसी मार्ग से निकलना पडा, जिसक एक और प्रभु की देशना चल रही थी। उसने कानों में उँगलियाँ डाल लीं, किन्तु भागते समय पाँव में एक काँटा चुभ गया । कानों से हाँथ हटाकर उसने झटपट काटा निकाला और फिर भाग खड़ा हुआ । । दूसर दिन वह पकड़ लिया गया । राजा ने अपराध कबूल करवाने के लिए एक नाटक किया । रात को अनिन्द्य सुन्दरियों के बीच उसे छोड़ दिया गया । एक सन्दरी ने उससे कहा :- "पण्योदय से आप मरकर इस स्वर्ग में आये हैं । हम सब अप्सराएं आपकी सेवा में मौजूद हैं । यदि आपने पृथ्वीपर कोई बरा काम किया हो तो बता दीजिये । हम इन्द्रदेव से आप को क्षमा दिला देंगी । अन्यथा आप को नरक में जाना पड़गा !"
रोहिणेय जब काँटा निकालने के लिए रुका था, तब कुछ वाक्य उसक कानों में पट गय थ । प्रभ न दवों का लक्षण बताया था कि जमीन पर
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