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इसलिए चातुर्मास समाप्त हो जाने के कारण उस दिन सभी पंचमहाव्रतधारी साधु-साध्वी अन्यत्र विहार कर जाते हैं ।
तीसरा कारण है - कलिकालसर्वज्ञ ३ क्रोड़ श्लोक के रचयिता धुरन्धर विद्वान जैनाचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिजी का जन्मदिन ।
सवंत १९४१ की कार्तिक पूर्णिमा को जन्म लेनेवाले हेमचन्द्रचार्यजी की दीक्षा संवत् १९५४ में माघशुद १४ को हुई थी । जन्म नाम चांगदेव था। दीक्षा के समय मुनिश्री सोमचन्द्र रक्खा गया; किन्तु संवत् १९६६ में सूरिपद प्राप्ति के समय से उन्हें श्री हेमचन्द्राचार्य कहा जाने लगा ।
व अत्यन्त प्रतिभाशाली थे । नौ वर्ष की अवस्था में प्रव्रजित हुए और जीवनभर वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी बने रहे । उन्होंने अपने गुरुदेव से शास्त्रों का गहरा अध्ययन किया । उनके प्रवल पाण्डित्य का तत्कालीन सभी विद्वान् लोहा मानते थे ।
उन्होंने विपुल एवं विविध साहित्य की रचना की थी । व्याकरण, कोष, छन्द, काव्यशास्त्रा, चरित्र, महाकाव्य आदि सभी विद्याओं पर आपने सफलतापूर्वक मौलिक ग्रन्थ लिख कर गुजरात को ही नहीं, सारे भारतवर्ष को विश्वसाहित्य के मंच पर गौरवान्वित किया है ।
आपका सबसे एक बडा ग्रन्थ है - "सिद्धहम महाकाव्य' । यह विशाल, किन्तु सरल व्याकरण है । पाणिनि के बाद ऐसा व्याकरणकार कोई अब तक नहीं हुआ है । पाणिनीय व्याकरण की तरह ईसमें भी आठ अध्याय ह । पणिनि ने सात अध्यायों में संस्कत व्याकरण का और आठवं अध्याय में वैदिक-व्याकरण का समावेश किया है, उसी प्रकार हेमचन्द्रचार्यने भी सात अध्यायों में संस्कृत व्याकरण का और आठवें अध्याय में प्राक़त व्याकरण का समावेश किया है ।
दुसरा ग्रन्थ है- “त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरितम्" इसमें ठसठ महापुरुषों के जीवनचरित्रों का छत्तीस हजार श्लोकों में वर्णन किया गया है ।
इनक अतिरिक्त “अभिधानचिन्तामणिः ("अमरकोष” की तरह पद्यात्मक शब्दकोष), वीतरागस्त्रोत्त ('सयाद्वादमंजरी नामक दर्शनिक ग्रन्थ की व्याख्या), देशी नाममाला (कोष), योगशास्त्राम् ,कायानुशासनम् (साहित्यशास्त्र), छन्दोऽनुशासनम, द्वयाश्रयमहाकाव्यम्, परिशिष्टपर्व, शब्दानुशासनम्, अनेकार्थसंग्रहः” (कोषग्रन्थ:) आदि उनक प्रसिद्ध ग्रन्थ है ।
पूर्णिमा को जन्म लेकर आचार्य श्री ने जीवन में पूर्णता प्राप्त की, गुजरात में अहिंसा धर्म का प्यापक प्रचार किया और महाराजा सिद्धराज जयसिंह तथा कुमारपाल भूपाल के जीवन को धार्मिक दिशा में मोड़ दिया । श्रीकृष्ण के उपदेश को जिस प्रकार अर्जन ने ग्रहण किया था, उसी प्रकार हेमचन्द्राचार्यक
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