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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीन दिन की अविराम यात्रा के बाद अजीमगंज आया. घर आकर भी प्रेमचन्द अपने में ही खोये हुए थे. कुछ आवश्यक व्यावहारिक कार्यों को निपटाकर प्रेमचन्द ने संयम ग्रहण करने की अपनी तमन्ना अजीमगंज के अपने एक निकटतम मित्र के सामने अभिव्यक्त की. साथ ही इस तथ्य को सर्वथा गुप्त रखने का विनम्र सुझाव भी आपने मित्र को दिया माता भवानीदेवी प्रेमचन्द की इस अन्तर - भावना से पूरी तरह अनभिज्ञ थी. यकायक एक दिन प्रातः माँ को प्रणाम कर किसी को बिना कुछ बताए प्रेमचन्द घर से निकल पड़े. जेब में कुछ रुपयों के अलावा हाथ खाली थे पर जीवन को संयम की सुरभि से महकाने की अहोभावना थी. बस, इस दिन के बाद प्रेमचन्द कभी घर नहीं आए. प्रेमचन्द अलविदा. वीतराग के पथ पर गृहत्याग के बाद दिल्ली - बरोड़ा होते हुए प्रेमचन्द दिपावली के दिन अहमदाबाद पहुँचे. उस दिन अपने सहपाठी मित्र के यहाँ रहकर नूतन वर्ष की सुप्रभात होते - होते आप साणंद पहुँच गये. अपने जीवन निर्माता आचार्य देव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. के सान्निध्य में पहुँचकर आपको अपार सन्तोष हुआ. बाती को घी मिला. वैराग्य की भावना में तीव्रता आयी. नूतन १९ For Private And Personal Use Only
SR No.008728
Book TitlePadmasagarsuriji Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalsagar
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1991
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size2 MB
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