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- पथ का महत्त्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ. प्रेमचन्द वीतराग के बतलाए अमर प्रव्रज्या - पथ पर चलने को तत्पर हो उठे. सचमुच आचार्य प्रवर का पावन सान्निध्य प्रेमचन्द की अभूतपूर्व उपलब्धि थी. मन - ही मन आचार्यश्री के समक्ष प्रव्रज्या ग्रहण करने का शुभ संकल्प कर प्रेमचन्द अपने सहपाठी मित्र के साथ ही अहमदाबाद चले आए. इस प्रकार प्रेमचन्द के इहलौकिक जीवन - शिल्पी की महान खोज पूरी हुई.
घर को अलविदा वीतराग का पथ वीरों का पथ है. बुज़दिलों का यहाँ काम नहीं. बंगाली खून प्रेमचन्द को निरन्तर चुनौती दे रहा था और प्रेरित कर रहा था साहस व सद्भावना के साथ इस अमर पथ पर चल पड़ने के लिये. आचार्य भगवन्त के असरकारक शब्द कानों में गूंज रहे थे : "संसार में आसक्त व्यक्ति के लिए संयम काँटों की डगर है. साधक तो कांटों को फूल समझते हैं. बिना कष्ट के इष्ट की प्राप्ति नहीं होगी. सहन करने वाला ही अन्ततः सिद्ध बनेगा."
प्रेमचन्द मित्र से अनुमति लेकर अजीमगंज के लिए चल पड़े. रेल - यात्रा प्रारम्भ हुई. सफ़र में अकेले एक कोने में बैठे प्रेमचन्द की पैनी आँखें रेल की खिड़की से प्रकृति का परिदर्शन कर रही थीं. मनोमंथन प्रारम्भ हुआ : 'जीवन का क्या अर्थ है?'
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