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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir R किया, आप को दुःख पहुँचाया, तो इस को आप कर्म राजा का पोष्टमन मान लो । पोष्टमन सरकार का प्रतिनिधि है, और दुःख कर्मराजा का प्रतिनिधि है । अज्ञानदशा में, भूतकाल में, हमने जो कर्म उपार्जन किया है उसका कारण हम स्वयं है । कर्म बंधन से मुक्त होने के लिए ही दुःख हमारे जीवन में आता है। अंत मे यही दुःख आशीर्वाद बनना है । प्रसन्नता पूर्वक दुःख का स्वागत करो । एक बार कबीर के पास एक दुःखी व्यक्ति आया । परिस्थिति से लाचार बन गया था । कबीर के प्रति उस व्यक्ति ने याचना की - " मैं तो अति दुःखी हूँ । आप की कृपा होगी तो मेरी समस्या हल हो जाओगी और मैं कुछ सुख का अनुभव करूं ।" कबीर गृहस्थ हो कर भी अंतरात्मा में एक महान् संत थे । उन के अंतः करण में वात्स्यल्य और प्रेम भरा हुआ था | कबीर ने उस दुःखी व्यक्ति को आशीर्वाद दिया- “ और कहा" - तुम अति दुःखी बन जाओं । दुःखी व्यक्ति को बहुत आश्चर्य हुआ और उसने कबीर से पूछा - "कबीरजी ये आपने क्या किया !" कबीरने कहा " [" - मैं ने तो सच ही किया हैं मैंने जो आशीर्वाद दिया । है है | दंडा मारो उस सुख को जो प्रभु को भूलाय । बलीहारी उस दुःख का जो बार बार प्रभु समराय ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008727
Book TitlePadmaparag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherShantilal Mohanlal Shah
Publication Year1979
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
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