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- मोक्ष मार्ग में बीस कदममाया कुटिलता है। सरलता से उस पर विजय पाई जा सकती है :मायं मज्जवभावेण॥
-दशवैकालिक (माया पर मार्दव के भाव से विजय पाना चाहिये।)
माया से विश्वास टूट जाते हैं। इससे मित्र छूट जाते हैं और मनुष्य को एकाकीपन का कष्ट भोगना पड़ता है। साथ ही अगले भव में भी पशु-पक्षी या स्त्री के रूपमें जन्म लेकर कष्ट भोगने पड़ते हैं। इस प्रकार दोनों भव बिगड़ जाते हैं। शुभचन्द्राचार्य कहते हैं :
अलं मायया प्रपञ्चेन लोकद्वय विरोधिना।। (दोनों भव बिगाड़ने वाले छल प्रपंच से दूर रहो।)
वैसे तो कपट का व्यवहार किसी के साथ करना ही नहीं चाहिये; फिर भी आचार्य आदि कुछ ऐसे व्यक्ति नीतिकारों ने गिनाये हैं, जिनके साथ कपट का व्यवहार बहुत घातक होता
आचार्ये च नटे धूर्ते वैद्य–वेश्या-बहुश्रुत्ते।
कौटिल्यं नैव कर्त्तव्यम् कौटिल्यं तैर्विनिर्मितम्।। (आचार्य, नट, धूर्त, वैद्य, वेश्या और बहुश्रुत-इनके साथ कुटिलता न करें; क्योंकि कुटिलता के निर्माता ये ही लोग हैं।)
इन पर कुटिलता का कोई प्रभाव नहीं होगा और कुटिलता करने पर ईंट का जवाब पत्थर से मिलेगा! इस प्रकार लेने के देने पड़ जायेंगे। उदाहरणार्थ यदि आप किसी वैद्य को धोखा देते हैं तो स्वास्थ्यलाभ में देरी हो सकती है- बीमारी की अवधि बढ़ सकती है--निदा न गलत होने पर नया रोग भी पैदा हो सकता है; अतः चिकित्सा कराते समय वैद्य के प्रश्नों का ठीक-ठीक उत्तर देना चाहिये-उससे कुछ छिपाना न चाहिये और न कोई गलत जानकारी ही देनी चाहिये।
जो विद्यार्थी अपने अध्यापक को धोखा देते हैं, वे परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो सकतेठोस ज्ञान से वंचित रहते हैं और अपना अमूल्य समय बर्बाद करते हैं। छात्रावस्था में जो ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वह जीवन-भर काम आता है। यदि ज्ञानार्जन में आलस्य कर गये तो फिर उसकी पूर्ति बाद में नहीं हो सकेगी; क्योंकि यौवनावस्था में कुटुम्ब के पालन-पोषणार्थ धनार्जन की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है; इसलिए छात्रावस्था में निश्चिन्तता पूर्वक ज्ञानार्जन के लिए प्राप्त अवसर का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिये।
आजकल परीक्षा भवन में नकल करने की प्रवृत्ति बहुत बढ़ गई है। आये दिन समाचारपत्रों में हमें ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती रहती हैं। इक्के-दुक्के दादा टाइप् छात्र ही
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